दिनभर की खबरों के लिए बने रहे news24abn.in के साथ
अम्बेडकरनगर। एक ही दिन मनाए जाएंगे दो महा व्रत, महा रविवार व्रत एवं अनंत चतुर्दशी इस बार यह दोनों व्रत एक ही दिन पड़ रहे हैं। कहा गया है कि ये दोनों ब्रत अपने आप मे बहुत ही महत्व रखते हैं।यह दोनो ब्रत भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष दिन रविवार चतुर्दशी तिथि 19 सितम्बर को महा रविवार व्रत एवं अनंत चतुर्दशी व्रत रखा जाएगा । उक्त बातें बताते हुए सनातन वैदिक आश्रम देवभूमि या गांव के आचार्य पंडित आशुतोष शुक्ला ने बताया कि शास्त्रों की ऐसी मान्यता है कि जो महा रविवार व्रत रखता है उसके जीवन में धनधान्य की कभी कमी नहीं होती एवं जो महा रविवार का व्रत श्रद्धा पूर्वक करता है। उसकी कीर्ति का विस्तार होता है लोक में यश की प्राप्ति होती है और अंत में मोक्ष को प्राप्त होता है ।
उन्होंने अनंत चतुर्दशी के बारे में महाभारत में ऐसा वर्णन है कि जब पांडव जुए में अपना सारा राज-पाट हारकर वन में कष्ट भोग रहे थे, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अनंत चतुर्दशी का व्रत करने की सलाह दी थी। धर्मराज युधिष्ठिर ने अपने भाइयों तथा द्रौपदी के साथ पूरे विधि-विधान से यह व्रत किया तथा अनंत सूत्र धारण किया। अनंत चतुर्दशी व्रत के प्रभाव से पांडव सब संकटों से मुक्त हुए थेतथा इसी व्रत को सत्ययुग में सुमन्तु नाम के एक मुनि थे। उनकी पुत्री शीला अपने नाम के अनुरूप अत्यंत सुशील थी। सुमन्तु मुनि ने उस कन्या का विवाह कौण्डिन्य मुनि से किया। कौण्डिन्य मुनि अपनी पत्नी शीला को लेकर जब ससुराल से घर वापस लौट रहे थे, तब रास्ते में नदी के किनारे कुछ स्त्रियां अनन्त भगवान की पूजा करते दिखाई दीं। शीला ने अनन्त-व्रत का माहात्म्य जानकर उन स्त्रियों के साथ अनंत भगवान का पूजन करके अनन्तसूत्र बांध लिया। इसके फलस्वरूप कुछ दिनों में उसका घर धन-धान्य से पूर्ण हो गया। एक दिन कौण्डिन्य मुनि की दृष्टि अपनी पत्नी के बाएं हाथ में बंधे अनन्तसूत्र पर पड़ी, जिसे देखकर वह भ्रमित हो गए और उन्होंने पूछा-क्या तुमने मुझे वश में करने के लिए यह सूत्र बांधा है? शीला ने विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया- यह अनंत भगवान का पवित्र सूत्र है। परंतु ऐश्वर्य के मद में अंधे हो चुके कौण्डिन्य ने अपनी पत्नी की कही बात को भी गलत समझा और अनन्तसूत्र को जादू-मंतर वाला वशीकरण करने का डोरा समझकर तोड़ दिया तथा उसे आग में डालकर जला दिया। इस जघन्य कर्म का परिणाम भी शीघ्र ही सामने आ गया। उनकी सारी संपत्ति नष्ट हो गई। दीन-हीन स्थिति में जीवन-यापन करने में विवश हो जाने पर कौण्डिन्य ने अपने अपराध का प्रायश्चित करने का निर्णय लिया। वे अनंत भगवान से क्षमा मांगने हेतु वन में चले गए। उन्हें रास्ते में जो मिलता, वे उससे अनंद देव का पता पूछते जाते थे। बहुत खोजने पर भी कौण्डिन्य को जब अनंत भगवान का साक्षात्कार नहीं हुआ, तब वे निराश होकर प्राण त्यागने को विवश हुए। तभी एक वृद्ध ब्राह्मण ने आकर उन्हें आत्महत्या करने से रोक दिया और एक गुफा में ले जाकर चतुर्भुज अनंत देव का दर्शन कराया।भगवान ने मुनि से कहा- तुमने जो अनंत सूत्र का तिरस्कार किया है, यह सब उसी का फल है। इसके प्रायश्चित हेतु तुम चौदह वर्ष तक निरंतर अनंत व्रत का पालन करो। इस व्रत का अनुष्ठान पूरा हो जाने पर तुम्हारी नष्ट हुई सम्पत्ति तुम्हें पुन: प्राप्त हो जाएगी और तुम पूर्ववत् सुखी-समृद्ध हो जाओगे। कौण्डिन्य ने इस आज्ञा को सहर्ष स्वीकार कर लिया। भगवान ने कहा की जीव अपने पूर्ववत् दुष्कर्मों का फल ही दुर्गति के रूप में भोगता है। मनुष्य जन्म-जन्मांतर के पातकों के कारण अनेक कष्ट पाता है। अनंत व्रत के सविधि पालन से पाप नष्ट होते हैं तथा सुख-शांति प्राप्त होती है।
No comments:
Post a Comment