टोक्यो ओलिंपिक में नीरज चोपड़ा (Neeraj Chopra) के जैवलिन थ्रो में गोल्ड मेडल जीतने के पीछे उसका गेम के प्रति अनुशासन है। वह गेम के अलावा किसी प्रोग्राम में हिस्सा नहीं लेते थे फिर चाहे प्रोग्राम कोई भी हो। उन्हें केवल और केवल गेम का ही ध्यान रहता था। यह बात यहां नेशनल इंस्टीट्यूट आफ स्पोर्ट्स (एनआइएस) के चीफ एथलेटिक कोच बहादुर सिंह ने दैनिक जागरण से बातचीत में बताई। नीरज के गाेल्ड जीतने पर पंजाब के पटियाला में भी जश्न का माहाैल है।
प्रैक्टिस के दौरान नहीं लेते थे छुट्टी
बहादुर सिंह ने कहा कि उन्हें आज तक याद नहीं है कि नीरज ने आकर उन्हें कभी कहा हो कि वो किसी प्रोग्राम में जाना चाहता है और उसे प्रैक्टिस से छुट्टी दे दी जाए। बहादुर सिंह ने बताया कि यह अवश्य है कि प्रैक्टिस के दौरान कोई अन्य शारीरिक परेशानी होती थी तो नीरज उन्हें बताकर रेस्ट कर लेते थे। बात की जाए उनकी ट्रेनिंग के दौरान अनुशासन की तो वो गेम के लिए 100 फीसद अनुशासन में रहते थे।
सुबह छह से 10 बजे तक जिम में बहाते थे पसीना
सुबह छह बजे से लेकर 10 बजे तक प्रैक्टिस करते या फिर जिम में पसीना बहाते थे। कभी कभार उन्हें इससे ज्यादा समय भी लग जाता लेकिन उनके उत्साह में कभी कमी नहीं देखी। सप्ताह के पांच से छह दिन प्रैक्टिस करते रहे हैं। बहादुर सिंह कहते हैं कि नीरज चोपड़ा की उपलब्धि में एथलेटिक्स फेडरेशन आफ इंडिया सहित हरियाणा सरकार का काफी सहयोग रहा है। फेडरेशन व सरकार ने न केवल खिलाड़ी को प्रोत्साहित किया है, बल्कि उसके परिवार की भी हौसला अफजाई की है। ऐसी स्थिति में भी खिलाड़ी का गेम के प्रति लगाव बढ़ता है।
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